ऋषिकेश में ढालवाला के समीप तपतपाती धुप में दिन के 10 बज रहे थे | समूण टीम सदस्य Mr. Manoj Nautiyal ऑटो में बैठकर बाजार के लिए जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें अचानक एक आदमी दिखा जिसके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं थे और वह बीच सड़क में लेटा हुआ था | मनोज नौटियाल जी जब 2 बजे घर वापस पहुंचे तो उन्होंने मुझे Vinod Jethuri को फ़ोन किया और इस ब्यक्ति के बारे में बताया और किसी भी तरह से उसकी सहायता करने को कहा | हमने घर से कुछ पुराने कपडे लिए और वहाँ पहुंचे जहाँ पर वह उसे सुबह के बक्त दिखे थे |
जैसे ही हम वहां पहुंचे तो देखा कि वह बीच सड़क में लेट रखा था, गाडिया किनारे से जा रही थी और कुछ लोग उसे डंडा के बल पर सड़क से किनारे कर रहे थे ताकि वह गाडी के निचे न आए | वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ था, हम उसी वक्त उसे सड़क के निनारे ले गए एवं कपडे पहनाये और फिर पीने के लिए पानी और जूस दिया |
हमने देखा कि लोग उसे पैसे देते और चले जाते जिसे वह वहीं पर छोड़ देता और पैसे हवा से उड़ जाते । क्योंकि उसे पैसों को सँभालने तक की समझ नहीं थी, वास्तव में उसे पैसो की नहीं कपड़ो और खाने की जरुरत थी | कुछ लोगों को हमने पैसे देने के लिए मना भी किया लेकिन लोग फिर भी दिए जा रहे थे | हर कोई जरुरतमंदो की मदद करना चाहता है लेकिन यह बहुत कम लोग सोचते है कि उस ब्यक्ति को वास्तव में किस चीज की आवश्यकता है, बस पैसे देते और चले जाते है | अधिकतर लोग बिना परिश्रम के पैसो से ही अब पुन्य अर्जित करना चाहते है | सुबह से दिन के 2 बजे तक यह ब्यक्ति सड़क पर लेटा रहा पर किसी ने भी उसे एक कपड़ा पहनने की हिम्मत नहीं की | उसके हाथ बहुत जल चुके थे क्योंकि वह हाथ के बल सडक पर घिसटते हुए जा रहा था ।
हमने निर्णय किया कि इस ब्यक्ति को हर संभव मदद करेंगे, हम नजदीकी पुलिस कार्यालय (सी ओ ) ऑफिस गए और उनसे हेल्प के लिए कहा, तत्काल उन्होंने हमें 2 पुलिसकर्मी दे दिए | अब हम सबसे पहले उसे सरकारी अस्पताल में भरती करवाना चाहते थे लेकिन पता चला की मानसिक रोगियों को सरकारी हॉस्पिटल वाले भरती नहीं करते | फिर किसी ने कहा की देहरादून से आगे सिलाकुई के पास में मानसिक रोगियों के लिए हॉस्पिटल बना हुआ है आप उसे वहां ले जे जाओ लेकिन ओ लोग उसे एडमिट करेंगे की नहीं यह आपको पूछना पड़ेगा | हमने इन्टरनेट के माध्यम से ईस हॉस्पिटल के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिस की लेकिन हमें कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिले |
अब तक रात भी हो चुकी थी, हमने नजदीक के दुकानदार को रात को उसे देखने के लिय कहा और उसे खाना खिलाने के बाद अपने घर चले गए यह सोचकर कि सुबह रात खुलते हम उसे देहरादून ले जायेंगे लेकिन जब सुबह वहां पहुंचे तो वह वहां नहीं मिला |
कृपया अगर किसी को देहरादून के पास सिलाकुई में या उत्तराखंड में कहीं भी मेंटल हॉस्पिटल है के बारे में जानकारी हो और वंहा पर मानसिक रोगियों को एडमिट करने की क्या प्रक्रिया है मालूम है तो साझा करें क्योंकि शायद हम किसी और की हेल्प कर सकें |
धन्यवाद
जैसे ही हम वहां पहुंचे तो देखा कि वह बीच सड़क में लेट रखा था, गाडिया किनारे से जा रही थी और कुछ लोग उसे डंडा के बल पर सड़क से किनारे कर रहे थे ताकि वह गाडी के निचे न आए | वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ था, हम उसी वक्त उसे सड़क के निनारे ले गए एवं कपडे पहनाये और फिर पीने के लिए पानी और जूस दिया |
हमने देखा कि लोग उसे पैसे देते और चले जाते जिसे वह वहीं पर छोड़ देता और पैसे हवा से उड़ जाते । क्योंकि उसे पैसों को सँभालने तक की समझ नहीं थी, वास्तव में उसे पैसो की नहीं कपड़ो और खाने की जरुरत थी | कुछ लोगों को हमने पैसे देने के लिए मना भी किया लेकिन लोग फिर भी दिए जा रहे थे | हर कोई जरुरतमंदो की मदद करना चाहता है लेकिन यह बहुत कम लोग सोचते है कि उस ब्यक्ति को वास्तव में किस चीज की आवश्यकता है, बस पैसे देते और चले जाते है | अधिकतर लोग बिना परिश्रम के पैसो से ही अब पुन्य अर्जित करना चाहते है | सुबह से दिन के 2 बजे तक यह ब्यक्ति सड़क पर लेटा रहा पर किसी ने भी उसे एक कपड़ा पहनने की हिम्मत नहीं की | उसके हाथ बहुत जल चुके थे क्योंकि वह हाथ के बल सडक पर घिसटते हुए जा रहा था ।
हमने निर्णय किया कि इस ब्यक्ति को हर संभव मदद करेंगे, हम नजदीकी पुलिस कार्यालय (सी ओ ) ऑफिस गए और उनसे हेल्प के लिए कहा, तत्काल उन्होंने हमें 2 पुलिसकर्मी दे दिए | अब हम सबसे पहले उसे सरकारी अस्पताल में भरती करवाना चाहते थे लेकिन पता चला की मानसिक रोगियों को सरकारी हॉस्पिटल वाले भरती नहीं करते | फिर किसी ने कहा की देहरादून से आगे सिलाकुई के पास में मानसिक रोगियों के लिए हॉस्पिटल बना हुआ है आप उसे वहां ले जे जाओ लेकिन ओ लोग उसे एडमिट करेंगे की नहीं यह आपको पूछना पड़ेगा | हमने इन्टरनेट के माध्यम से ईस हॉस्पिटल के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिस की लेकिन हमें कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिले |
अब तक रात भी हो चुकी थी, हमने नजदीक के दुकानदार को रात को उसे देखने के लिय कहा और उसे खाना खिलाने के बाद अपने घर चले गए यह सोचकर कि सुबह रात खुलते हम उसे देहरादून ले जायेंगे लेकिन जब सुबह वहां पहुंचे तो वह वहां नहीं मिला |
कृपया अगर किसी को देहरादून के पास सिलाकुई में या उत्तराखंड में कहीं भी मेंटल हॉस्पिटल है के बारे में जानकारी हो और वंहा पर मानसिक रोगियों को एडमिट करने की क्या प्रक्रिया है मालूम है तो साझा करें क्योंकि शायद हम किसी और की हेल्प कर सकें |
धन्यवाद
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