यों तो उत्तराखंड के जंगलो में हर साल गर्मियों
में आग लगती है परन्तु इस साल 2016 की
गर्मियों में फरवरी से अप्रैल तक 88 दिनों से जादा समय तक लगी भीषण आग से 3 हजार
एकड के लगभग जमीन जलाकर खाख हो गयी और लगभग 6 से अधिक बेकसूर
लोगों को अपनी जान गवानी पडी |
अभी “उत्तराखंड”
इस भीषण आग के दुख: से उबर भी नहीं पाया था कि फिर से आसमानी बारिश ने पिथोरागढ़ और चमोली वही
किया जिसका हम सबको डर था, जिसमे की अभी तक 30 से अधिक लोगों को की मौत हो चुकी है |
आखिर क्यों ???????
यों तो हर साल उत्तराखंड
में बहुत मुसलाधार बारिश होती है लेकिन पिछले २-४ सालों से बरसात के समय कुछ न कुछ
अप्रिय घटना सुनने को मिल रही है | हम सभी को इस विषय पर आत्मचिंतन करते हुए प्राकृतिक
आपदाओं के मूल कारण व इन कारणों के समाधानों पर कार्य करने की जरुरत है | मैंने जब
इस विषय पर गंभीरता से सोचा तो उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं के निम्नलिखित मूल
कारणों को पाया :-
कारण:-
क्षेत्र
में विकास के नाम पर जंगलो के वृक्षों का अत्यधिक कटान |
विकास
के नाम पर बनी विजली के परियोजनाओं से पहाडो का कमजोर होना |
लकड़ी
तस्करों का जंगलो से अच्छे अच्छे प्रजातियों के वृक्षों का कटान करना जो की मिट्टी
तथा पत्थरो को अपने जड़ो से जकड कर रखते थे व भूस्खलन को रोकने में सहायक होते थे |
पहाड़
के मूल निवासियों का पलायन करना तथा बहारी लोगो का पहाड़ में बसना जो की सिर्फ पैसे
कमाने के मकसद से उत्तराखंड में आते है और प्रकृति को हानी पहुचाते है |
बढ़ती
जनसख्या से जंगलो को काट काट कर आवासीय क्षेत्र में परिवर्तित किया जा रहा है
जिससे कि दिन प्रतिदिन हमारे जंगल ख़त्म होते जा रहे है |
सही जानकारी का अभाव, जान-माल की
सुरक्षा के इस मुद्दे पर लोगों में जानकारी का अभाव |
गदेरे (खालो) और नदी के किनारों पर बन
रहे अत्यधिक निर्माणों को रोकने हेतु सरकार का विफल प्रयास
आदि बहुत से कारण है जिससे हर मानसून में जीवन, संपत्ति, कृषि-भूमि, सड़कों,
आदि की हानि होती है जिसमे से भूस्कलन सबसे मुख्या है | चट्टानों, मिट्टी और वनस्पतियों का किसी ढलान पर नीचे की ओर खिसकना ही भूस्खलन है।
भूस्खलन, एक चट्टान के छोटे से टुकड़े से लेकर, मलबे व पानी के बहुत बड़े बहाव के
रूप में हो होता है जिसमें भारी मात्रा में मिट्टी और पानी कई किलोमीटर तक अपने
रास्ते में जो भी मिलाता है उसे समेटते हुए ले जाता है |
उत्तराखंड की प्राकृतिक सौन्दर्य ही हमारी धरोहर
है लेकिन दिन प्रतिदिन ये हमारी खुबसूरत सी धरोहर नष्ट होती जा रही है | अगर प्रकृति के साथ इसी तरह से हस्तक्षेप जारी रहा तो भविष्य में
भूस्खलन अत्यधिक बढ़ सकते हैं|
उपाय:-
इसके रोकने का एक ही उपाय है “वृक्षारोपण”
हमें अधिक से अधिक संख्या में अपने
निजी और सरकारी जमीन पर वृक्ष लगाने चाहिए जिससे प्रकृति का संतुलन बना रहे और येसी
प्राकृतिक आपदाओं को रोका जाय | वन भूस्कलन को रकते है और हमें शुद्ध ऑक्सीजन देते
है, वनों की हरियाली के बिना मानव जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है | वन देश और
राज्य की प्रगति में हमें आर्थिक सहयोग देते हैं |
प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि
वह अपने जीवन में एक वृक्ष अवश्य लगाए । आज हम स्वार्थ के लिए पेड़ तो काटते है
लेकिन लेकिन पेड़ लगाना भूल जाते है जिससे यह समस्या आज इतनी उग्र होती चली जा रही
है । आओ अपने जीवन में एक पौधा लगाए और पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करे |
“समूण” परिवार के सदस्यों व गांववासियों के सहयोग से हमने रविवार दिनांक 31
जुलाई को ग्राम सौड और ग्राम कुर्न पट्टी भरपूर, टिहरी गढ़वाल में वृक्षारोपण कार्यक्रम
के तहत 1100 वृक्ष लगाने का लक्ष्य रखा है, साथ ही गांव वासियो को वनों के महत्व व वनों
को बचाए रखने हेतु सरकार की योजनाओं के बारे में भी जागरुक किया जाएगा |
आप सभी से सहयोग की अपील की जाती है
यदि आप फिजिकल रूप से हमें इस प्रोजेक्ट में सहयोग नहीं कर सकते तो एक पेड़ के लिए 250/- रुपये का धनराशी दान
देकर अपने नाम से एक वृक्ष लगवा सकते है | आपके नाम से उस वृक्ष को लगाया जाएगा और
उसकी फोटो आपके साथ साझा किया जाएगा |
धन्यवाद !
“टीम समूण”
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