Sunday 24 May 2020

कोरोना का हाहाकार














न सोचा था कभी कि, येसा भी दिन आयेगा
कोरोना नाम की बिमारी, ईतना हाहाकार मचायेगा
जो जहाँ फँस गया है, वहीँ फँसा रह जायेगा
अपनो से नजदीक रहकर भी अपनो से न मिल पायेगा


अपने ही घर मे जब कोई, महिनो बाद आएगा
जिसको देखो घर मे उसका, मुँह ढका ही पाएगा
हाथ मिलाना गले लगाना, किसी से न कर पायेगा
दुर से ही हाथ हिलाकर, १४ दिन का वनवास चले जायेगा
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........


 माँ बाप के मर जाने पर बेटा, मुखाग्नि न दे पायेगा
पंडित जी फोन पर ही, अंतिम सँस्कार करवायेगा
करुणामय हर्दय की पीडा सिर्फ वही समझ पायेगा
जिसने खोया अपनो को और उनसे कभी न मिल पायेगा
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........


 घाडी, घोडा, ट्रेन, जहाजेँ सब बंद हो जायेगा
पैँसे वालोँ का पैँसा भी कुछ काम न कर पायेगा
मजदूर तो बेबस है बेचारा, पैदल ही निकल जायेगा
कोई पहुँचेंगा घर को अपने, कोई भुखा प्यासा ही मर जायेगा
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........ 


इस महामारी से लडने को कुछ कोरोना योधा बन जायेंगेँ
मानवता की सेवा को अपनी, जान न्यौछावर कर जायेंगे
रोते बिलखते अपने बच्चोँ को वह महोनोँ तक न मिल पायेंगे
येसा कोरोना योधाओँ का, हर कोई गुणगान गायेंगेँ
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........
 
पीडा, दुख, दर्द का यह अशुभ समय टल जायेगा
सुख शांति और सौहार्द का सुभ समय फिर आयेगा
बैज्ञनिकोँ की शोध बहुत जल्द गुल खिलायेगा
कि इस महामारी की दवाई बहुत जल्दी बन जायेगा


न सोचा था कभी कि, येसा भी दिन आयेगा
कोरोना नाम की बिमारी, ईतना हाहाकार मचायेगा


© विनोद जेठुडी, 24 मई 2020