उत्तराखंड के कुमांऊ मंडल के धारचूला गाँव के पान सिंह एवं उनकी पत्नी बीना देवी और दो बच्चे पीयूष और आयुष का छोटा सा परिवार हंसी खुशी जीवन यापन कर रहे थे |
पान सिंह एक ट्रक ड्राईवर था वह ऋषिकेश से कर्णप्रयाग और
नजदीक के पहाड़ी क्षेत्रो में ट्रक से सामान पहुँचाने का काम करता था, वह अपनी
पत्नी व बच्चों को भी साथ ले गया और कर्णप्रयाग के पास सिमली में कराए के कमरे में
रहने लगा और पास के शिशु मंदिर में बचों को स्कूल में दाखिला करवा दिया |
हंसी खुशी दिन कट रहे थे कि 2013 में आयी आपदा में जब
पान सिंह ट्रक से सामान ले जा रहे थे तो बाढ़ के पानी की चपेट में गए और ट्रक समेत
नदी में बह गए | अब इस परिवार पर दुखों का पहाड़ गिर गया एक ही सदस्य घर में कमाने
वाला था ओ भी चल बसा, दो छोटे छोटे बच्चे और बीना देवी अकेले रहने लगे |
बीना देवी वापस धारचुला जाना चाहती थी लेकिन वहां पर किस
के सहारे जाती सास ससुर पहले ही चल बसे और जेठ जी है लेकिन वह भी बेरोजगारी और गरीबी
के कारण अपने ही परिवार का भरण पोषण करने में असमर्थ है | बीना देवी ने एक हिम्मत
भरा काम किया कि जिस घर में रह रही थी उसी के आगे से एक चाय की दूकान खोल दी और
चाय बेचना शुरू कर दिया साथ ही आर्डर पर खाना बनाना भी शुरू कर दिया और अपने
परिवार का भरण पोषण करने लगी |
बीना देवी इस दूकान को बड़ा बनाकर चलाना चाहती है लेकिन
आर्थिक तंगी के कारण बस चाय बेचने तक ही सिमित रह गयी है वह भी दिन के सिर्फ 15 - 20 चाय बिकते है | बचों को इंग्लिश माध्यम स्कूल से नजदीक के सरकारी स्कूल में भर्ती
कर दिए है और दिन प्रतिदिन जीवन मुस्किल होता जा रहा है | वह कुछ ग्रोसरी और कोल्ड ड्रिंक्स का सामान दुकान में रखना चाहती
है लेकिन पैसे न होने के कारण दूकान को आगे नहीं बढ़ा पा रही है |
समूण फाउंडेशन के माध्यम से हम बीना देवी का यह सपना
पूरा करना चाहते है | समूण परिवार के सदस्यों ने निर्णय लिया है कि हम बीना देवी की
यह दूकान अच्छा सा बनाकर उसमे डेली प्रयोग में आने वाली अधिक से अधिक सामान भरेंगे
ताकि वह इस दूकान के माध्यम से अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें, साथ ही आयुष और
पीयूष की पढाई हेतु आर्थिक सहयोग की भी कोशिस करेंगे |
धन्यवाद
टीम समूण
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Date :- 03/09/2017
उत्तराखंड के कुमांऊ मंडल के धारचूला गाँव के पान सिंह जी की 2013 मेँ उत्तराखँड आपदा मे मृत्यु के पश्चात उनकी धर्म पत्नी बीना देवी और दो बच्चे पीयूष और आयुष बेसहारा हो गए थे और बहुत ही मुस्कील से जीवन यापन कर रहे थे ।
बीना देवी की हिम्मत और हौसले को सलाम कि उन्होने किसी के उपर निर्भर रहने की बजाय खुद ही कुछ करने की ठानी ।
आज कर्णप्रयाग के समीप सिमली के पास समूण फाउँडेशन के सहयोग से बनी दुकान और रेस्टोरेँट के माध्यम से बीना देवी अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है और खुशी से जीवन ब्यतीत कर रही है ।
बीना देवी की हिम्मत और हौसले को सलाम कि उन्होने किसी के उपर निर्भर रहने की बजाय खुद ही कुछ करने की ठानी ।
आज कर्णप्रयाग के समीप सिमली के पास समूण फाउँडेशन के सहयोग से बनी दुकान और रेस्टोरेँट के माध्यम से बीना देवी अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है और खुशी से जीवन ब्यतीत कर रही है ।