यों तो हर साल उत्तराखंड में बहुत मुसलाधार बारिश होती है लेकिन पिछले २-४ सालों से बरसात के समय कुछ न कुछ अप्रिय घटना सुनने को मिल रही है | हम सभी को इस विषय पर आत्मचिंतन करते हुए प्राकृतिक आपदाओं के मूल कारण व इन कारणों के समाधानों पर कार्य करने की जरुरत है | मैंने जब इस विषय पर गंभीरता से सोचा तो उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं के निम्नलिखित मूल कारणों को पाया :-
कारण:-
क्षेत्र में विकास के नाम पर जंगलो के वृक्षों का अत्यधिक कटान |
विकास के नाम पर बनी विजली के परियोजनाओं से पहाडो का कमजोर होना |
लकड़ी तस्करों का जंगलो से अच्छे अच्छे प्रजातियों के वृक्षों का कटान करना जो की मिट्टी तथा पत्थरो को अपने जड़ो से जकड कर रखते थे व भूस्खलन को रोकने में सहायक होते थे |
पहाड़ के मूल निवासियों का पलायन करना तथा बहारी लोगो का पहाड़ में बसना जो की सिर्फ पैसे कमाने के मकसद से उत्तराखंड में आते है और प्रकृति को हानी पहुचाते है |
बढ़ती जनसख्या से जंगलो को काट काट कर आवासीय क्षेत्र में परिवर्तित किया जा रहा है जिससे कि दिन प्रतिदिन हमारे जंगल ख़त्म होते जा रहे है |
सही जानकारी का अभाव, जान-माल की सुरक्षा के इस मुद्दे पर लोगों में जानकारी का अभाव |
गदेरे (खालो) और नदी के किनारों पर बन रहे अत्यधिक निर्माणों को रोकने हेतु सरकार का विफल प्रयास
आदि बहुत से कारण है जिससे हर मानसून में जीवन, संपत्ति, कृषि-भूमि, सड़कों, आदि की हानि होती है जिसमे से भूस्कलन सबसे मुख्या है | चट्टानों, मिट्टी और वनस्पतियों का किसी ढलान पर नीचे की ओर खिसकना ही भूस्खलन है। भूस्खलन, एक चट्टान के छोटे से टुकड़े से लेकर,मलबे व पानी के बहुत बड़े बहाव के रूप में हो होता है जिसमें भारी मात्रा में मिट्टी और पानी कई किलोमीटर तक अपने रास्ते में जो भी मिलाता है उसे समेटते हुए ले जाता है |
उत्तराखंड की प्राकृतिक सौन्दर्य ही हमारी धरोहर है लेकिन दिन प्रतिदिन ये हमारी खुबसूरत सी धरोहर नष्ट होती जा रही है | अगर प्रकृति के साथ इसी तरह से हस्तक्षेप जारी रहा तो भविष्य में भूस्खलन अत्यधिक बढ़ सकते हैं|
उपाय:-
इसके रोकने का एक ही उपाय है “वृक्षारोपण”
धन्यवाद
"टीम समूण"
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