कुछ परिवार ऐसे भी है जो वास्तव में है तो आरक्षित वर्ग लेकिन कभी उसका लाभ नहीं उठा पाते क्योंकि वह निम्न स्तर का जीवन यापन कर रहे हैं और हमेशा उसी निम्न स्तर में अपने जीवन को त्याग देते हैं |
हम जिस परिस्थितियों में रहते हैं तो सोचते हैं कि सभी उस तरह की परिस्थिति में होंगे लेकिन एक ऐसी दुनिया जिसे हम कभी देखते ही नहीं है क्योंकि हम अपने स्वार्थ के वातावरण से बाहर ही नहीं निकलते लेकिन जब हम बाहर निकलते हैं और विषम परिस्थितियों में जी रहे लोगों को देखते हैं तो मन में एक दया भाव जाग उठता है फिर हम सोचते हैं ईश्वर ने जो हमें दिया वह कम नहीं है किसी किसी को तो यह भी नसीब नहीं होता...
जब वह बालक मुझे अपने गांव में देखता है एक आशा की किरण उसकी आंखों में चमक उठती है, उसका कोई भाई आज यहां आया हुआ है वह तेजस्वी आंखों की चमक के साथ विनम्रता से प्रणाम करता है ,मैं भी उसे स्वीकार करते हुए उसका हालचाल पूछता हूं वह बड़ी चंचलता मगर गंभीर तरह से मेरे प्रश्नों का उत्तर देता है तब मैं उसकी पढ़ाई के बारे में पूछता हूं तो वह कहता है सब ठीक चल रहा है और मन ही मन या फिर यूं कहें इशारे ही इशारे में अपनी मां की ओर देखता है, कौतूहल बस मैं उसे पूछता हूं आजकल स्कूल जा रहे हो क्या ? फिर वह अपनी मां की ओर देखता है, उसकी मां कहती है कि इस ने आजकल मेरी जान खा रखी है कहता है, जब तक जूते नहीं लाओगे तो स्कूल नहीं जाऊंगा..
अब मेरे मन में स्थिति पैदा होती है क्या उसे पैसे दे दूं.. क्या यह उचित रहेगा ? अचानक मेरा हाथ मेरे जेब में जाता है.. तभी मेरा मस्तिष्क कहता है कि नहीं, जूते भेजना उचित रहेगा... फिर मैं उससे वादा करते हुए ,उसके गांव जूते भेज देता हूं.. कल से वह खुशी खुशी इतराते हुए विद्यालय जाएगा...
बात बहुत छोटी थी, मगर उसके मायने बहुत बड़े..
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